उत्तराखंड में जल्द लागू हो सकती है समान नागरिक संहिता, पढ़ें क्या होंगे प्राविधान

 देहरादून : उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता जल्द लागू हो सकती है। संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए गठित समिति दो फरवरी को रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा कर यह जानकारी दी है।       क्या है समान नागरिक संहिता :                                   समान नागरिक संहिता (यूसीसी) में देश में निवास कर रहे सभी धर्म और समुदाय के लोगों के लिए समान कानून की वकालत की गई है। वर्तमान में हर धर्म और जाति का अलग कानून है। इसके हिसाब से ही शादी, तलाक जैसे व्यक्तिगत मामलों में निर्णय होते हैं।                                                समान नागरिक संहिता के लाभ :

राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता:

समान नागरिक संहिता सभी नागरिकों के बीच एक समान पहचान और अपनेपन की भावना पैदा करके राष्ट्रीय एकता एवं धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देगी।

इससे विभिन्न पर्सनल लॉज़ के कारण उत्पन्न होने वाले सांप्रदायिक और पंथ-संबंधी विवादों में भी कमी आएगी।

यह सभी के लिये समानता, बंधुता और गरिमा के संवैधानिक मूल्यों को भी संपुष्ट करेगी।

लैंगिक न्याय और समानता:

समान नागरिक संहिता विभिन्न पर्सनल लॉज़ के अंतर्गत महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और उत्पीड़न को दूर करके लैंगिक न्याय एवं समानता सुनिश्चित करेगी।

यह विवाह, तलाक़, उत्तराधिकार, गोद लेने, भरण-पोषण आदि मामलों में महिलाओं को समान अधिकार और दर्जा प्रदान करेगी।

यह महिलाओं को उन पितृसत्तात्मक और प्रतिगामी प्रथाओं को चुनौती देने के लिये भी सशक्त बनाएगी जो उनके मूल अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

कानूनी प्रणाली का सरलीकरण और युक्तिकरण:

समान नागरिक संहिता विभिन्न पर्सनल लॉज़ की जटिलताओं और विरोधाभासों को दूर करके कानूनी प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाएगी।

यह विभिन्न पर्सनल लॉज़ के कारण उत्पन्न होने वाली विसंगतियों और खामियों को दूर करके नागरिक और आपराधिक कानूनों में सामंजस्य स्थापित करेगी।

यह कानून को आम लोगों के लिये अधिक सुलभ और समझने योग्य बनाएगी।

पुरानी एवं प्रतिगामी प्रथाओं का आधुनिकीकरण और सुधार:

समान नागरिक संहिता कुछ पर्सनल लॉज़ में प्रचलित पुरानी एवं प्रतिगामी प्रथाओं का आधुनिकीकरण और इसमें सुधार करेगी।

यह उन प्रथाओं को समाप्त कर देगी जो भारत के संविधान में निहित मानव अधिकारों और मूल्यों के विरुद्ध हैं, जैसे तीन तलाक़, बहुविवाह, बाल विवाह, आदि।

यह बदलती सामाजिक वास्तविकताओं और लोगों की आकांक्षाओं को भी समायोजित करेगी।

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