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यहां सांप को पूजते हैं ग्रामीण, सांप के साथ नृत्य करते हैं पांडव पश्वा - मोनाल एक्सप्रेस

यहां सांप को पूजते हैं ग्रामीण, सांप के साथ नृत्य करते हैं पांडव पश्वा 

@ देवी देवताओं की धरती है उत्तरकाशी जिले की यमुनाघाटी                           @ सरनौल गांव का पांडव नृत्य देखने आते हैं दूर दूर से लोग

देहरादून : उत्तराखंड में सीमांत जनपद उत्तरकाशी की यमुनाघाटी और गंगाघाटी में देवी देवताओं की बहुत मान्यता है। यूं कहें तो यमुनाघाटी देवी देवताओं की धरती है। यहां पौराणिक काल में इसके प्रमाण भी मिले हैं। बड़कोट तहसील में पड़ने वाले क्षेत्र सरुताल से यात्रा कर इस शुक्रवार शाम यानि 13 नवंबर को देव डोलियां ( रेणुका देवी, जमदग्नि ऋषि की डोली) सरुताल बुग्याल की यात्रा कर सरनौल गांव पहुंची, जहां शनिवार को देव डोलियों की विदाई के दौरान देवता की थाती (देवस्थल) के पास पांच से छह फीट लम्बा सांप नजर आया। तभी ग्रामीणों पर पांडव पश्वा अवतरित हुए। पांडव पश्वा ने हाथों से सांप को उठाया।‌ फिर पांडव पश्वा देव डोली से भेंट कराने के बाद सांप को गले में डाल कर नृत्य किया। बाद में सांप को दूध पिलाने के बाद मन्दिर परिसर के निकट जंगल में ही छोड़ दिया गया। मान्यता है कि यमुनाघाटी में कभी ऋषि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका देवी कुटिया में रहते थे। यमुनाघाटी से गंगाघाटी देवी रेणुका रोज ऋषि जमदग्नि के लिए भागीरथी नदी से पानी लाती थी। इसलिए क्षेत्र के लोग आज भी उन्हें देवी देवताओं के रूप में पूजते हैं। इसके अलावा यमुनाघाटी में पांडवों का भी वास रहा है। बताया जा रहा है कि सरनौल गांव में पांडव पश्वा पहले भी ऐसा कर चुके हैं। गांव में अगर किसी के घर आंगन में सांप दिख जाता है तो पांडव पश्वा को बुलाया जाता है। पांडव पश्वा पहचान लेते हैं कि सांप नागराजा देवता का प्रतीक है कि नहीं। अगर नाग राजा देवता का प्रतीक है तो पांडव पश्वा उसे पकड़ लेते हैं। फिर उसे जंगल में छोड़ा दिया जाता है।

यह गांव उत्तरकाशी से करीब 160 किलोमीटर की दूर है। सालभर यहां धार्मिक मेलों को दौर रहता है। सरनौल गांव में पांडव नृत्य ही होता है। जिसे देखने जिले के आलावा देशभर भी लोग आते हैं।

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