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टिहरी की मदर टेरेसा “सुशीला देवी” का निधन मानो एक सदी का अंत - मोनाल एक्सप्रेस

टिहरी की मदर टेरेसा “सुशीला देवी” का निधन मानो एक सदी का अंत

87 वर्षीय सुशीला देवी का 18 जनवरी को निधन हो गया। वह लंबे समय तक समाज सेवा से जुड़ी रहीं।

देहरादून : रंग सांवला, चेहरे पर झुर्रियां, कमर झुकी हुई, हाथ में पतली लाठी लिए समाजसेवी बुजुर्ग सुशीला देवी अब आपको इस जन्म में नहीं दिखेंगी। आपके शरीर में कहीं नश चढ़ गई हो तो अब इसे निकालने वाले हाथ नहीं मिलेंगे। गरीब परिवारों की गर्भवती महिलाओं को अब प्रसव कराने के लिए अस्पतालों का ही रुख करना पड़ेगा, क्योंकि सुशीला देवी की निशुल्क सेवा अब उन्हें नहीं मिल पाएगी। जी हैं यहां बात की जा रही है टिहरी जनपद के थौलधार विकासखंड के नकोट गांव की सुशीला देवी की। अभी पिछ्ले सप्ताह ही उनका निधन हो गया। 18 जनवरी को उन्होंने अपने घर में अंतिम सांस ली। 87 वर्षीय सुशीला देवी पिछ्ले करीब डेढ माह से बिस्तर पर थीं। उन्हें शरीर में सूजन की शिकायत थी। बीमारी के चलते धीरे-धीरे उनका खाना भी छूट गया था। अपने पीछे वह भरा-पूरा परिवार छोड़ गई हैं। उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं। बड़ा बेटा मोहन लाल बधाणी उनकी क्रिया में बैठे हैं। सुशीला देवी के जाने के बाद हर किसी की जुबान में बस यही आ रहा है कि काश वह कुछ साल और जीवित रहतीं, क्योंकि उनकी भरपाई करना शायद कभी संभव नहीं होगा। अस्वस्थ होने से पहले तक बुजुर्ग सुशीला अपने लगभग सभी कार्य स्वयं करती थीं। यहां तक की खेत-खलियान का भी वह कार्य बड़ी इच्छाशक्ति व उत्साह से करती थीं। इसके साथ ही किसी की कमर में या शरीर में कहीं भी नश चढ़ जाने पर वह बड़े प्यार से उस नश को अपनी जगह में ले आती थीं। कई सालों तक उन्होंने अपने क्षेत्र में सीमित संसाधनों के बीच गर्भवती महिलाओं का प्रसव करवाया। इन दोनों कार्यों में उन्हें महारत हासिल थी। इन कार्यों के लिए उन्होंने कभी किसी से एक पैंसा नहीं लिया। उल्टा जो भी सुशीला के घर पर जाता था तो वह बिना चाय पिये या भोजन किए वापस नहीं जाता था। साथ में मेहमान के बैग या जेब में घर में उपलब्ध चीजों में से जरूर कुछ ना कुछ देतीं थीं। इसमें बिस्किट, नमकीन, मूंगफली, टॉफ़ी, पैसे आदि शामिल रहता था। उन्हें टिहरी गढ़वाल जनपद की मदर टेरेसा कहा जाए तो शायद यह गलत नहीं होगा, क्योंकि सुशीला देवी ने भी मदर टेरेसा की भान्ति आमजन, विशेष रूप से गरीब परिवारों की हरसंभव मदद की है, जिसमें उनका कोई स्वार्थ नहीं था। आज जब वह हमारे बीच में नहीं हैं तो ऐसा लग रहा है मानो एक सदी का अंत हो गया है।

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