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भिन्डी के प्रमुख हानिकारक कीट एवं रोकथाम - मोनाल एक्सप्रेस

भिन्डी के प्रमुख हानिकारक कीट एवं रोकथाम

देहरादून : इन दिनों बरसात है। ऐसे में भिन्डी की फसल को कई प्रकार के कीट हानि पहुंचाते हैं। किसी भी कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि हम उस कीट की प्रकृति, स्वभाव, पहिचान, जीवन चक्र के बारे में जानकारी रखें, तभी कीट का प्रभावकारी नियंत्रण किया जा सकता है।

1. हरा फुदका ,जैसिड ( लीफ हापर ) :
यह हरे रंग का 3 – 5 मि.मी. लम्बा वेलनाकार कीट होता है। इस कीट का प्रकोप पौधो के प्रारम्भिक वृद्धि अवस्था के समय से होता है। शिशु एवं वयस्क पौधे की पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं तथा पत्तियों में अपना विषाक्त लार प्रवेश करा लेती है जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है। प्रभावित पत्तियां पीली हो कर ऊपर की ओर मुड़कर कटोरा नुमा आकार की हो जाती है। अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां मुरझाकर सूख जाती हैं।इस कीट की तीन अवस्थाएं होती है अण्डा, अवयस्क फुदके एवं वयस्क फुदके। इस कीट की मादा निषेचन करके पत्तियों के बीच की धारियां पर अण्डे देती है करीब 4 – 5 दिनों बाद अण्डे से छोटे अवयस्क फुदके निकल कर पत्तियों का रस चूसना प्रारम्भ कर देते है। अवयस्क फुदके पंखहीन होते हैं इनको छूने पर ये तिरछे चलते हैं अवयस्क फुदके कुछ दिनों में वयस्क फुदकौ में परिवर्तित हो जाते हैं।वयस्क फुदकों पर पंख होते हैं तथा छूने पर उड़ते हैं इस कीट से प्रभावित पत्तियों को हिलाने पर ये कीट पतियों पर उड़ते हुए दिखाई देते हैं। इस कीट का जीवन काल 30 – 45 दिनों का होता है बर्ष भर में इस कीट की 14 – 15 पीढि़यां पाई जाती है।

2. सफेद मक्खी –
ये सूक्ष्म आकार के कीट होते है तथा इसके शिशु एवं प्रौढ पत्तियों, कोमल तने एवं फल से रस को चूसकर नुकसान पहुंचाते है. जिससे पौधो की वृध्दि कम होती है तथा उपज में भी कमी आ जाती है। संक्रमित भाग पर ये कीट एक लसलसा मीठा पदार्थ भी स्त्रावित करते है जिससे फफूंद का आक्रमण बढ़ जाता है, इस कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया में भी बाधा पड़ती है| सफेद मख्खी भिंडी के प्रमुख वायरस जनित रोग पीला शीरा विषाणु मोजेक रोग को फैलाने में भी सहायक होते हैं।

3.एफिड्स ( माहु,चेपा, जूं)-
एफिड्स छोटे पीले, हरे सुफेद, भूरे व काले मुलायम शरीर वाले होते हैं, वयस्क 1 मिमी लंबे होते हैं और पेट के पृष्ठीय भाग पर दो उभार होते हैं जिन्हें कॉर्निकल्स कहा जाता है।

वयस्क और अपरिपक्व रूप पार्थेनोजेनेटिक रूप से प्रजनन करते हैं। अकेली मादा प्रति दिन 8-22 निम्फ पैदा करती है। निम्फ 7 से 9 दिन में पूर्ण हो जाते हैं तथा एक ऋतु में कई पीढ़ियाँ पूर्ण हो जाती हैं।

एफिड्स बड़ी कॉलोनियों में पत्तियों के नीचे और कोमल टहनियों पर पाए जाते हैं। शिशु और वयस्क रस चूसते हैं जिस कारण प्रभावित पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और नष्ट हो जाती हैं। कीट शहद का रस भी निकालता है जिस पर कवक विकसित होता है, तेजी से पौधे को कालिख के फफूंद से ढक देता है जो पौधे की प्रकाश संश्लेषक गतिविधि में हस्तक्षेप करता है। परिणामस्वरूप, पौधे की वृद्धि रुक ​​जाती है और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, वे एफिड्स द्वारा संचरण के लिए एक वेक्टर के रूप में कार्य करते हैं। इस कारण होने वाला नुकसान उनके द्वारा पौधे को खिलाने और नष्ट करने से कहीं अधिक गंभीर है।

4. रेड स्पाइडर माइट –
यह कीट पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर भारी संख्या में कॉलोनी बनाकर रहता हैं। यह अपने मुखांग से पत्तियों की कोशिकाओं में छिद्र करता हैं । इसके फलस्वरुप पत्तियों से जो द्रव निकलता है उसे चूसता हैं। क्षतिग्रस्त पत्तियां पीली पड़कर टेढ़ी मेढ़ी हो जाती हैं तथा पौधों में वृद्धि रुक जाती है अधिक प्रकोप होने पर संपूर्ण पौधा सूख कर नष्ट हो जाता हैं।

5.फल छेदक : इस कीट का प्रकोप वर्षा ऋतु में अधिक होता है। प्रारंभिक अवस्था में इसकी इल्ली कोमल तने में छेद करती है जिससे पौधे का तना एवं शीर्ष भाग सूख जाता है। फूलों पर इसके आक्रमण से फूल लगने के पूर्व गिर जाते है। इसके बाद फल में छेद बनाकर अंदर घुसकर गूदा को खाती है। जिससे ग्रसित फल मुड़ जाते हैं और भिण्डी खाने योग्य नहीं रहती है।

6. ब्लिस्टर बिटल –
इस कीट के वयस्क नारंगी लाल रंग के काले बैन्ड युक्त होते हैं। फसल पर फूल आने की अवस्था में इन कीटों के वयस्क फूलों के पराग कोष को खाते हुए दिखाई देते हैं। परिणाम स्वरूप ऐसे फूलों पर फल नहीं बन पाते।
एक वयस्क बीटल कीट दिन भर में 20 – 30 फूलों को नुक्सान पहुंचा सकता है।हाथ से छूने पर यह कीट पीले रंग का अम्लीय द्रव छोड़ता है जिससे हाथों पर फफोले पड़ जाते हैैं।

रोकथाम-
कीटों की अधिकतर चार अवस्थाएं अण्डा,लार्वा,प्यूपा व वयस्क होती है। हानिकारक कीटों से फसलों की सुरक्षा हेतु कीटों की इन चारों अवस्थाऔ को नष्ट करने का प्रयास करना चाहिए तभी फसलों की कीटों से सुरक्षा हो पाती है।

जैविक विधियों से कीटों का नियंत्रण-

1. खडी फसल का समय-समय पर निरीक्षण करें पौधों पर कीड़ों के अंडे, सूंडियों,प्यूपा तथा वयस्क यदि दिखाई दें तो पौधे के उस भाग को हटा कर एक पौलीथीन की थैली में इकट्ठा कर नष्ट करें।

ब्लिस्टर बीटिल कीट को सुबह के समय हाथ में पौलीथीन लगाकर पकड़ कर किसी डब्वे में इकट्ठा कर नष्ट करें। सुबह के समय बीटल कीट निष्क्रिय रहता है।

2. प्रकाश प्रपंच की सहायता से रात को वयस्क कीड़ों को आकर्षित कर तथा उन्हें नष्ट करते रहना चाहिए। प्रकाश प्रपंच हेतु एक चौडे मुंह वाले वर्तन ( पारात,तसला आदि ) में कुछ पानी भरलें तथा पानी में मिट्टी तेल मिला लें उस वर्तन के ऊपर मध्य में विद्युत वल्व लटका दें यदि खेत में लाइट सम्भव न हो तो वर्तन में दो ईंठ या पत्थर रख कर उसके ऊपर लालटेन या लैंम्प रख दें। साम 7 से 10 बजे तक वल्व, लालटेन या लैम्प को जला कर रखें। वयस्क कीट प्रकाश से आकृषित होकर वल्व, लालटेन व लैम्प से टकराकर वर्तन में रखे पानी में गिर कर मर जाते हैं। बाजार में भी प्रकाश प्रपंच/ सोलर प्रकाश प्रपंच उपलब्ध हैं।

3. वयस्क कीड़ों को आकर्षित करने के लिए फ्यूरामोन ट्रेप का प्रयोग करना व उन्हें नष्ट करना। फेरोमोन ट्रैप को गंध पाश भी कहते हैं। इसमें एक प्लास्टिक की थैली पर कीप आकार की संरचना लगी होती है जिसमें ल्योर ( गंध पास ) लगाने के लिये एक सांचा दिया होता है। ल्योर में फेरोमोन द्रव्य की गंध होती है जो आसपास के नर कीटों को आकर्षित करती है। ये ट्रैप इस तरह बने होते हैं कि इसमें कीट अन्दर जाने के बाद बाहर नहीं आ पाते हैं। बीज दवा की दुकानों में फ्यूरेमोंन ट्रेप उपलब्ध रहते हैं। ऐमेजान (AMAZON ) से भी फेरोमान ट्रेप मंगाते जा सकते हैं।

4. पीली एवं नीली स्टिकी ट्रैप का प्रयोग- स्टिकी ट्रेप पतली सी चिपचिपी शीट होती है। स्टिकी ट्रैप शीट पर कीट आकर चिपक जाते हैं तथा बाद में मर जाते हैं। जिसके बाद वह फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं। स्टिकी ट्रैप कई तरह की रंगीन शीट होती हैं जो फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए खेत में लगाई जाती है। इससे फसलों पर आक्रमणकारी कीटों से रक्षा हो जाती है और खेत में किस प्रकार के कीटों का प्रकोप चल रहा है इसका सर्वे भी हो जाता है। स्टिकी ट्रैप बाजार में बनी बनाई आती हैं और इन्हें घर पर भी बनाया जा सकता है। इसे टीन, प्लास्टिक और दफ्ती की शीट से बनाया जा सकता है। अमूमन यह चार रंग के बनाए जाते है, पीला, नीला, सफेद और काला। इसे बनाने के लिए डेढ़ फीट लम्बा और एक फीट चौड़ा कार्ड बोर्ड, हार्ड बोर्ड या टीन का टुकड़ा लें। उन पर सफेद, काला,नीला व पीला चमकदार रंग लगा दें रंग सूखने पर उनपर ग्रीस , अरंडी तेल की पतली सतह लगा दें। इन ट्रैपों को पौधे से 30 – 50 सेमी ऊंचाई पर लगाएं। यह ऊंचाई कीटों के उड़ने के रास्ते में आएगी। टीन, हार्ड बोर्ड और प्लास्टिक की शीट साफ करके बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि दफ्ती और गत्ते से बने ट्रैप एक दो बार इस्तेमाल के बाद खराब हो जाते हैं। ट्रैप को साफ करने के लिए उसे गर्म पानी से साफ करें और वापस फिर से ग्रीस लाग कर खेत में टांग सकते हैं। एक नाली हेतु दो ट्रेप प्रयोग करें।

हर कीट किसी विशेष रंग की ओर आकर्षित होता है। सफेद मक्खी, ऐफिड और लीफ माइनर जैसे कीटों के लिए पीला स्टिकी ट्रेप बनाया जाता है।
नीला स्टिकी ट्रैप
थ्रिपिस कीट के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

5. प्रिल Pril ,निरमा लिक्यिड वर्तन धोने का साबुन एक चम्मच तीन लिटर पानी में या अन्य कोई भी डिटर्जेन्ट/ साबुन , प्रति तीन लीटर पानी की दर से घोल बनाकर कर स्प्रे मशीन की तेज धार से कीटों से ग्रसित भाग पर छिड़काव करें। पांच दिनों के अन्तराल पर दो तीन बार छिड़काव करें।ध्यान रहे , छिड़काव से पहले साबुन के घोल को किसी घास वाले पौधे पर छिड़काव करें यदि यह पौधा तीन चार घंटे बाद मुरझाने लगे तो घोल में कुछ पानी मिला कर घोल को हल्का कर लें।

6.एक कीलो लकडी की राख में दस मिली लीटर मिट्टी का तेल मिलाएं । मिट्टी का तेल मिली हुई लकड़ी की राख प्रति नाली 500 ग्राम की दर से कीटों से ग्रसित खड़ी फसल में बुरकें।
पौधों पर राख बुरकने हेतु राख को मारकीन या धोती के कपड़े में बांध कर पोटली बना लें, एक हाथ से पोटली को कस्स कर पकड़े तथा दूसरे हाथ से डन्डे से पोटली को पीटें जिससे राख ग्रसित पौधों पर बराबर मात्रा में पढ़ती रहे।

7. एक लीटर, आठ दस दिन पुराना गौ मूत्र का छः लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। गौमूत्र जितना पुराना होगा उतना ही फायदेमंद होगा। 10 दिनों के अन्तराल पर फसल पर गौमूत्र का छिड़काव करते रहें।

8. कटवर्म , गुबरैला कीट के उपचार हेतु व्यूवेरिया वेसियाना ( जैविक कीटनाशक फफूंद ) 5 ग्राम एक लीटर पानी में घोल बनाकर सायंकाल में पौधे की जड़ के पास की भूमि को तर करें। पौधों पर भी कीटों की रोकथाम हेतु छिड़काव किया जा सकता है।

9 . नीम पर आधारित कीटनाशकों जैसे निम्बीसिडीन निमारोन,इको नीम या बायो नीम में से किसी एक का 5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर सांयंकाल में या सूर्योदय से एक दो घंटे पहले पौधों पर छिड़काव करें। घोल में सैम्पू या डिटर्जेंट मिलाने पर दवा अधिक प्रभावी होती है।

रासायनिक उपचार।
इमीडाक्लोप्रिड / क्लोरोपाइरीफास या मैलाथियोन एक चम्मच दवा तीन लिटर पानी में घोल बनाकर कर पांच दिनों के अन्तराल पर तीन छिड़काव करें। एक ही दवा का प्रयोग लगातार न करें। साभार और विशेषज्ञ -डा ० राजेंद्र कुकसाल
मो० 9456590999

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