देहरादून : संस्कृति विभाग की ओर से गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर कवि सम्मेलन एवं मुशायरा कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस दौरान कवियों ने कविता पाठ कर कभी दर्शकों को भावुक किया, तो कभी खूब गुदगुदाया। वहीं, “दर्द गढ़वाली” के नाम से अलग पहचान बना चुके लक्ष्मी प्रसाद बडोनी ने मंच पर समां बांध दिया।

बीते बुधवार को हरिद्वार बाइपास स्थित संस्कृति निदेशालय सभागार में आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत बतौर मुख्य अतिथि रायपुर विधायक उमेश शर्मा काऊ ने दीप जलाकर की। उमेश ने सभी कवियों को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। इसके बाद कविता पाठ का दौर शुरू हुआ। संस्कृति विभाग के कवि सम्मेलन में “दर्द गढ़वाली” लक्ष्मी प्रसाद बडोनी ने बांधा समां दर्द गढ़वाली(लक्ष्मी प्रसाद बडोनी) की गजल इस कदर नाजिल बला-ए-आसमानी हो गई। जिंदगी अपनी दुखों की राजधानी हो गई। आपसे सीखे कोई मौसम बदलने का हुनर। आप गुजरे जिस तरफ से रुत सुहानी हो गई को दर्शकों की खूब दाद मिली। ‘ जनकवि अतुल शर्मा ने बादल घिर घिर के आये, फैले जहरीले साये। सुनीता चौहान ने त्यार बार जला भी आंव, सबुक राखो जोड़िकरी, बीना बेंजवाल ने सेलु लप्पा, बचै सकद ये मुल्क माटू पाणी, मदन मोहन डुकलान ने दुखदा दुखणा छन, आंसू सुखणा छन, शंकर दत्त जोशी ने तब छ बात, घर घर नल, ऐगी जल ए जाओ तब छ बात की प्रस्तुति देकर मंत्र मुग्ध किया । इस मौके पर अंबर खरबंदा, राजेश आनंद असीर, शादाब अली, नदीम बर्नी आदि ने भी काव्य पाठ किया। नेहा सिल्वाल आदि मौजूद रहे।