देहरादून: पौड़ी जनपद के कोटद्वार स्थित घमंडपुर के रहने वाले आजाद हिंद फौज के लेफ्टिनेंट मुरली सिंह रावत का बुधवार सुबह निधन हो गया। वही 104 वर्ष के थे। 10 अक्टूबर 1919 को जनपद पौड़ी के ग्राम खैन्डूड़ी गांव में जन्मे मुरली सिंह रावत ने हाईस्कूल तक की शिक्षा ग्रहण की थी। 18 वर्ष की आयु में वह रायल गढ़वाल रायफल में भर्ती हुए और तीन वर्ष की सेवा के बाद लांसनायक बन गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उनकी बटालियन 13 नवम्बर 1940 को सिंगापुर पहुंची। जहां उनके पोटामारू कैम्प में जापान ने हमला कर दिया और और अंग्रेजी फौज जापानी फौज के बटालियन ने जापानियों के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। 1942 में जापान ने कैदी सैनिकों को कैप्टन मोहन सिंह के हवाले किया और मोहन सिंह के नेतृत्व में आई0एन0ए0 का गठन हुआ। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा आई0एन0ए0 की कमान सभालने के बाद जगह जगह फौजियों के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोले गये। 1943 में मुरली सिंह ने ओपीएस पास की और लेफ्टिनेंट के रूप में उनकी नियुक्ति चौथी गुरिल्ला रेजीमेंट में हुई। उन्होने नियांगू, कोपाहिल और ईरावदी मोर्चे में अंग्रेजों से लडाई लडी। जिसमे उन्हें हार मिली और उन्हें आत्म समर्पण करना पड़ा। मुरली सिंह को उनके साथियों के साथ बर्मा की इन्सन जेल में रखा गया। 1 माह बाद उन्हें जेल से छोड़ कलकत्ता में नजरबंद रखा गया। यहां उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए लडाई लड़ी और इसलिए वे आजाद हिन्द फौज में शामिल हुए। 1946 को उन्हें जेल से मुक्त किया गया।
जेल से छूटने के सात साल बाद वे घर वापस लौटे। 1947 में वे द्वितीय होमगार्ड बटालियन में और 1948 को वे पीएसी की 13वीं बटालियन में हवलदार पद पर भर्ती हुए। यहां से वे प्लाटून कमांडर पद तक पहुंचे और 1974 में सेवानिवृत्त होकर घर लौट आए।